रविवार, 22 अप्रैल 2012

कहाँ खो गयी???

कहाँ खो गयी...
वह लहक ,
वह महक ,
वह चहक ,
वह चमक,
वह ललक,
और;
वह झलक
कहाँ खो गयी?




जीवन-मरू में,
रह गयी है...
बस ख़ामोशी,
और तुम्हारी;
वह सरगोशी.
भूल गयी....
वह मदहोशी,
ख़त्म हो गयी;
अब  बेहोशी.




जीवन में अब 
बस बची है,
तुम्हारी प्रतीक्षा;
और तुमसे
प्रीत के 
बोलों की 
वही 
पुरानी,
अपेक्षा..........

रविवार, 8 अप्रैल 2012

'सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा:सुधार हेतु सुझाव'

facebook  पर बहुत दिनों से एक message  flash   हो रहा है कि, 'हम नौकरी तो सरकारी चाहते हैं लेकिन अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में पढ़ाना नहीं चाहते हैं'......क्यों? सवाल  अत्यंत  विचारणीय है ........और जवाब एक ही है, 'हम सरकारी कर्मचारियों का एक standard  है, लेकिन सरकारी विद्यालय उस मानक पर खरे  नहीं उतरते हैं...


ज्यादा पुरानी बात नहीं है, आज से लगभग १५ साल पहले तक सरकारी विद्यालयों की स्थिति इतनी बुरी नहीं थी, लोगों के विचार थे कि जितने भी IAS ,IPS ,PCS अधिकारी हैं, सब सरकारी विद्यालयों से ही पढ़कर बने हैं, हाँलाकि; ये धारणा आज भी कायम है..... फिर; कारण क्या है? हम क्यों नहीं पढ़ाते अपने बच्चों को वहां? क्या private schools  में teachers  ज्यादा qualified  हैं? नहीं....ऐसा कुछ भी नहीं है....जो स्तर teachers  का govt .colleges  में है वह private  में कहीं नज़र भी नहीं आता..हाँ! यदि कुछ नज़र आता है तो वह है वहां का hardwork ,अच्छी सी बिल्डिंग, glamour और इंग्लिश....इसके अलावा guardians  को भाता है.....जितनी ज्यादा फीस उतना अच्छा स्कूल, जितना ज्यादा स्कूल का टाइम उतना अच्छा ही वह स्कूल,और फिर swimming ,games ,और summer camps .....अब ये धारणा मनो-मस्तिष्क पर काफी गहरे पैठ चुकी है, और हर समर्थ अविभावक ज्यादा फीस और भीड़ वाले स्कूल में अपने बच्चे का दाखिला करवाना चाहते हैं.....


अभी हम समझ नहीं रहे हैं कि यदि इन प्राइवेट schools  की कुक्कुर्मुत्ता पैदावार को नहीं रोका गया तो इसके क्या भयंकर परिणाम हमारी आगे आने वाली पीढ़ी को भुगतने  पड़ेंगे .....आज एक बच्चे की पढाई यदि शहर के किसी अच्छे {अविभावक की दृष्टि में} प्राइवेट स्कूल में करवाई जाती है तो कम-से-कम एक लाख रूपया सालाना लगता है ...यदि किसी के दो बच्चे हैं तो दो लाख और यदि उसकी सालाना कमाई पांच लाख रूपए है तो उसे दो लाख में अपना घर चलाना है और एक लाख रूपया भविष्य के लिए बचकर रखना है यदि उसे अपने बच्चो को आगे डॉक्टर,इंजीनियर या फिर MBA  कराना है....यानि शादी करने के बाद से उसे अपने बच्चों के लिए ही जीना है...वरना? और अगर इतनी कमाई में सब संभव नहीं है और आकान्छाएं ज्यादा  हैं तो लाख कोशिशों के बाद भी इस देश से भ्रष्टाचार और घूसखोरी नहीं ख़तम हो सकती....सरकार तो यही चाहती है कि ऐसे schools  और ज्यादा तादात में खुलते ही रहें क्योंकि यहाँ उसकी कमाई है...


तो फिर; क्या हो? इस बढ़ते हुए  शिक्षा के खेल में कैसे सही ढंग दुबारा लाया जाए? कैसे फिर से सरकारी विद्यालयों की पढाई का स्तर सुधारा जाए? मेरी नज़र में इसका एक तरीका है; वह यह कि सरकार यह नियम बना दे कि "  हर सरकारी कर्मचारी का बच्चा सरकारी स्कूल में ही पढ़ेगा".......आप देखिएगा उसी दिन से सभी सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता अपने आप ही अभूतपूर्व ढंग से सुधर जाएगी....जब शिक्षा-विभाग के आला अधिकारियों के बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढने जायेगे तो वह दिन दूर नहीं कि सरकार को और अधिक विद्यालय खोलने पड़ जायेंगे और वापस लौटेगा सरकारी विद्यालयों की वही पुरानी शान ............जहाँ से पढ़ा हुआ बच्चा ही आज ज्यादातर अधिकारी की कुर्सी को सुशोभित कर रहा है.... 










sarkar

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

'आओ खेलें भ्रष्ट-भ्रष्ट'

चलो आज नेता बन जाएँ 
फिर इस देश की बैंड बजाएँ;
सबको कर दें त्रस्त-त्रस्त
'आओ खेलें भ्रष्ट-भ्रष्ट'....


एक घोटाला तुम करो 
फिर एक घोटाला मैं करूं;
अखबारों में छपे सुर्खियाँ 
see -saw see -saw हम करें....


कसम खाएँ माँ-बाप की
एक 'प्रेस कांफ्रेंस' करें;
खेल चले बराबर का 
मिल-बाँट रुपैया हजम करें....


मढ़कर दोष किसी माथे पर
अपनी छवि उजली बनवाकर ;
कितने ही murder करवाकर 
कर दें सब कुछ अस्त-व्यस्त.....


देश का करके बंटाधार
खुद ही बन जाएँ कर्णधार;
हम तो हो जाएँ मस्त-मस्त
आओ; फिर खेलें भ्रष्ट-भ्रष्ट.....