गुरुवार, 20 सितंबर 2012

"मेरी इक मृगतृष्णा"

एक मुठ्ठी सूखी रेत में; घरौंदा देखना......
मेरी इक मृगतृष्णा है........

बादल गरजे, बिजली चमकी,बौछारों ने रास रचाई 
सहमी सी उस ख़ामोशी को बूंदों ने भी नज़र लगाई 
गर्जन में पिता और बिजली में बचपन;
सहज दिख जाता है,....................
बस,उन बूंदों में मासूमियत ढूंढ पाना 
मेरी एक मृगतृष्णा है...........

जीवन की हर राह, मोड़ पर;  साथी आये, सपने लाये 
संग अपने कसमे-वादों की प्यारी सी सौगात भी लाये 
जीवन में दुःख, वादों में सुकून 
सहज दिख जाता है .......................
ऐसे ही इक वादे  को निभते देख पाना
मेरी इक मृगतृष्णा है.............

लेकिन उस जर्जर घरौंदे में, छोटा सा परिवार बसा है 
थकी-हारी माँ की छाती में, अब भी थोडा दूध बचा है 
माँ की विवशता, बच्चों की विकलता 
सहज दिख जाती है ..............
पल-पल मरते उनमे, जीवन की ललक देख पाना 
मेरी इक मृगतृष्णा है...........

इक मुठ्ठी सूखी रेत में; घरौंदा देखना.........
मेरी इक मृगतृष्णा है............



.................................रागिनी.....................

शनिवार, 15 सितंबर 2012

"प्रेम का बगीचा"

तेरे लिए इक नीड़ मैंने बनाया है,
मन के रंगों से उसे मैंने सजाया है
घर के बाहर इक बगीचा बनाया है
प्रेम का इक पौधा उसमे लगाया है ..........

आसक्ति की रोपनी से रोपती उसे मैं
खाद विश्वास का डालती  उसे मैं
श्रद्धा के हजारे से सींचती उसे मैं
नेह की डोरी से फिर,बांधती उसे मैं .......

प्रीत की ताजगी ही तो हरियाली है 
अपने बगीचे की बात ही निराली है 
फूलों से लदी हुई यहाँ की हर डाली है 
उस पर प्रणय-गंध कितनी मतवाली है.....

रोज ही यहाँ कितने प्रेम-सुमन झरते हैं 
कण-कण प्रकृति के प्रेम-प्रेम करते हैं 
इक-दूजे के दुखों को हम प्रेम से हरते है
क्लेश और चिंता यहाँ आने से डरते हैं .......

कितने यत्नों से मैंने तुमको पाया है 
तुम जहाँ;  वहीँ पर तो मेरा साया है 
तेरे लिए इक नीड़ मैंने बनाया है 
मन के रंगों से उसे मैंने सजाया है।........

                                          
.....................रागिनी.................

गुरुवार, 6 सितंबर 2012

"ये आग कब बुझेगी"?

                            कल 5 सितम्बर था, यानि शिक्षक-दिवस,......आज विद्यालय में उस उपलक्ष्य में छात्राओं द्वारा  कुछ रंगा -रंग कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। सभी कार्यक्रम अत्यंत ही रोचक और मजेदार थे। लेकिन अचानक ही class 6 एक नन्ही सी छात्रा  एक शेर सुनाने मंच पर आई, और बड़े ही सधे हुए स्वर और जोश में उसने एक शेर सुनाना  आरम्भ किया,.......
                                  चांदनी चाँद से होगी, तो सितारों का क्या होगा 

मैडम सुन रही हैं ना, गौर फरमाइए , "चांदनी चाँद से होगी, तो सितारों का क्या होगा 

                                              मायावती मर जाएगी, तो चमारों का क्या होगा"?

                      यकीन हो या ना हो, लेकिन छोटे से लेकर बड़े बच्चों तक के हाँथ हवा में लहराए और जोरदार तालियाँ और ठहाका एक साथ हाळ  में गूँज उठा. हम सब सन्नाटे में आ गए, ये क्या हो गया? आखिर हम समाज के ठेकेदार  शिक्षक जो ठहरे। ये नहीं होना चाहिए था, गलत हुआ, वगैरह-वगैरह। लेकिन जिस बच्ची ने सुनाया था वह इन सभी बातों से बेफिक्र थी। उसके चेहरे पर अजीब से विद्रोही भाव थे, उसकी आँखें बहुत ही साफ़-साफ़ कह रही थी 'कुछ' ......ये 'कुछ' हम जाने कितने वर्षों से देख रहे हैं और परसों से लगातार टीवी पर सुन और देख रहे हैं। कल संसद में हुई हाथापाई और आज ये शेर सुनकर हम लोगों के बीच हुई अनबोली हाथापाई ...........आखिर कब तक?

                    
                        कब तक जातिगत राजनीति करने वाले समाज को दो फाड़ करते रहेंगे और कब तक हम आपस में एक-दूसरे को नफरत की नज़रों से देखते रहेंगे? कब तक समाज का एक वर्ग हमेशा 
तथाकथित रूप से पीछे ही रहेगा? क्या इतनी सुविधाओं से लैस कर दिए जाने पर भी उसकी कभी तरक्की नहीं होगी? [नेताओं की नज़रों में]  कब तक एक वर्ग से उसका जायज हक़ छीनकर किसी और को दिया जाता रहेगा? कब तक ये नफरत की आग राजनेता जलाये रखना चाहेंगे? कब तक इस आरक्षण की आग में प्रतिभाएं जलती रहेंगी? और आखिर कब तक नाजायज सुविधाओं का लाभ उठानेवालों की चेतना जाग्रत नहीं होगी? ज्यादा कुछ लिखने से मेरे अन्दर की आग भी जल उठेगी इसलिए बस इतना ही प्रश्न है मेरा,''ये आग कब बुझेगी"?

                      

बुधवार, 5 सितंबर 2012

बिनु गुरु ज्ञान कहाँ ते पाऊं

एक कच्ची मिट्टी के ढेले को सानकर, उसे चाक पर आकार देकर, आग में तपाकर सुंदर कलाकृति के रूप में परिवर्तित करने का श्रेय उस कुम्भकार को है जिसने इतनी मेहनत करके उसे दूसरों के लिए बनाया .....धन्य है वह . ठीक उसी प्रकार एक गुरु अपने शिष्य को संवारकर दूसरों के समक्ष अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित करने के लिए तैयार करता है, वह  उसके भविष्य के निर्माण में उसका सहयोग करता है. मन से गहन अन्धकार को निकालकर जो अपने शिष्य को प्रकाश से भरे सही मार्ग पर ले जाए वोही वास्तव में गुरु कहलाने का अधिकारी है ...फिर चाहे वो माँ हो, पिता हो, गुरु हो, भाई अथवा बहन या फिर मित्र या कोई और. हमें जीवन में जिससे ज्ञान प्राप्त हो जाए वही  हमारा गुरु है.
आज शिक्षक दिवस के पावन पर्व मैं सर्वप्रथम अपनी माँ को प्रणाम करुँगी तत्पश्चात अपने जीवन में विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तक के उन समस्त शिक्षकों को शत –शत प्रणाम करती हूँ जिनके उचित दिशा-निर्देश से आज मैं  कुछ बन पायी हूँ .
लेकिन बात यहीं समाप्त नहीं हो जाती .....क्योंकि जीवन अभी चल रहा है. मैंने इन सबके अलावा भी बहुत सारे लोगो से बहुत कुछ सीखा  है. 
अपने भाई (मनोज) से दूसरों की सहायता करना सीखा  है तो अपनी बहन (कामिनी) से सहनशक्ति,अपने पति (विवेक) से तो मैंने पशु-सेवा, दूसरों से प्रेम करना, जीवन में आगे बढ़ना, अपनी पहचान और ना जाने क्या-क्या सीखा  है ....अपनी मित्र (राज्यश्री) से जीवन बिखरने के बाद जोड़ना सिखा है, तो अन्य 
(निताशा) से जीवन दर्शन का ज्ञान मिला है....ये सब पूरा ज्ञान  मिलाकर मैं एक सफल टीचर, प्रिसिपल, माँ ,पत्नी,और एक समाज-सेविका बन पायी हूँ ,,,इन सबकी मैं आजीवन आभारी रहूंगी और सदा ही इनसे सीखे हुए पाठ मेरे जीवन का मार्ग प्रकाशित करते रहेंगे....लेकिन इन सबके अलावा जिन्होंने मुझसे मेरी पहचान अनजाने में करवा दी है उनको सिर्फ आज का ही दिन प्रणाम के लिए पर्याप्त नहीं है ..मैं आजीवन उन सभी की आभारी हूँ और होती रहूंगी ....



.......................................................डॉ . रागिनी मिश्र ................................