शनिवार, 16 अगस्त 2014

भारतीय गाँवों में आज़ादी के जश्न के मायने



जब तक लखनऊ के पॉश कहे जाने वाले गोमती नगर के विद्यालय में कार्यरत रही, किसी भी राष्ट्रीय पर्व पर वह जोश और उल्लास देखने को नहीं मिला, जो आज बाराबंकी के एक छोटे से कस्बे  में देखने को मिला। तबियत ख़राब होने के कारण दो दिन से विद्यालय नहीं गयी थी और हमारे विद्यालय की बिल्डिंग भी अभी पूरी नहीं बनी है, इसलिए जूनियर हाईस्कूल में ही स्वतंत्रता दिवस का कार्यक्रम होना था।   लेकिन बच्चों ने फोन पर ही अपनी निर्माणाधीन बिल्डिंग पर ध्वजारोहण करने की प्रार्थना की, ''मैंम; जितनी भी बनी  है अपनी तो है न ? हम फाइनल इयर में हैं, अगले साल कहाँ १५ अगस्त मनाएंगे , क्या पता? " कैसे ना मानती ये बात ? फोन पर ही हम भावुक हो गए।  मेरे ही विद्यालय में मुझे बच्चों ने सादर आमन्त्रित किया।
 मैं भी इतनी उत्साहित थी कि एक घंटे की ड्राइव के बावजूद सुबह 7.20 पर ही विद्यालय पहुँच गयी, जो कि  लखनऊ में २ मिनट का रास्ता तय कर जाने में 7. 45 हो जाते थे। अद्भुत नज़ारा था. मेरे रास्ते में लगभग 5 बेसिक और 4  प्राइवेट स्कूल हैं, सबके सब अपने सीमित साधनों में भरपूर सजे थे, झंडियां, रंगोली, चूना, फूल।
लगभग हर जगह बच्चे और टीचर्स 7 .15  पर ही मौजूद थे,  रास्ते में जाने वाले हर बच्चे के हाँथ में तिरंगा था।  गरीब की साइकिल पर भी तिरंगा था और झोपडी पर भी छोटा सा कागज़ का तिरंगा था।  ये वास्तविक राष्ट्रीय भावना थी …… सच, अपना बचपन याद आ गया।  रात में ही बाबा तिरंगा ला देते थे और सुबह चकाचक यूनिफार्म और हाँथ में तिरंगा लेकर अपने को '' भगत सिंह" से काम नहीं समझती थी  ................ और जैसे ही कार अपने निर्माणाधीन स्कूल के पास रोकी, बच्चों का झुण्ड समवेत स्वर में बोला, ''गुड मॉर्निंग मैम " एक लड़के ने जोर से डाँटा  '' नहीं'' और फिर सब एलर्ट खड़े होकर बोले " जय हिन्द"…।
अजीब सा रोमांच हो आया।  बिल्डिंग को दो दिन में ही बच्चों ने बाहर  से पुतवा दिया था, झंडे के लिए रॉड लग गयी थी, गाँधी आश्रम से खादी  का तिरंगा आकर लग चुका था।
चूने से पूरे रास्ते पर लाइन और ऐरो बने हुए थे , लड़कियां धान की भूसी को विभिन्न रंगों में रंगकर रंगोली बना पूरी कर रही थीं, जिन बच्चों को हमेशा साफ़ यूनिफार्म में आने के लिए डाँटना पड़ता रहता था, आज सब सफ़ेद साफ़ कपड़ों में थे।
मन खुश हो गया।  आज़ादी की ख़ुशी दोगुनी हो गयी.… लखनऊ में हमेशा ही 20 दिन पहले से ही पढ़ाई लिखाई  किनारे कर हम देशगीत और भाषण की प्रैक्टिस करते रहते थे, लेकिन यकीन मानिए ; यहाँ हर बच्चा अपने आप तैयार था।
क्या लड़कियां और क्या लड़के....... सबके हाँथ में एक पर्चा सा था।  एक के बाद एक अपने आप खड़े  होकर कुछ ना कुछ देश भक्ति से भरे हुए भाव व्यक्त कर रहे थे।
 ये फॉर्मेलिटी नहीं थी; सच में देशप्रेम के उदगार थे। सोचा था एक घंटे में निपट जाएगा सारा कार्यक्रम लेकिन मैंने अपनी ख़ुशी से बच्चों के बीच लगभग 4 घंटे बिताये,

आसपास के घर वालों ने भी ध्वजारोहण में भाग लिया और उन्होंने ने भी अपनी पुरबिया में गाने सुनाये।
लड्डू दुबारा मंगाए और जी भरकर सबको खिलाये।  आज मैंने मन ही मन इस छोटी सी जगह पर पोस्टिंग के लिए सरकार को धन्यवाद दिया। 'जय हिन्द'

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