रविवार, 22 अप्रैल 2012

कहाँ खो गयी???

कहाँ खो गयी...
वह लहक ,
वह महक ,
वह चहक ,
वह चमक,
वह ललक,
और;
वह झलक
कहाँ खो गयी?




जीवन-मरू में,
रह गयी है...
बस ख़ामोशी,
और तुम्हारी;
वह सरगोशी.
भूल गयी....
वह मदहोशी,
ख़त्म हो गयी;
अब  बेहोशी.




जीवन में अब 
बस बची है,
तुम्हारी प्रतीक्षा;
और तुमसे
प्रीत के 
बोलों की 
वही 
पुरानी,
अपेक्षा..........

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