जब मिटाने रावण को,श्रीराम आयेंगे,
सामने अपने वो,कितने ही रावण पाएंगे
देख उनको, क्या नहीं वो अच्कचायेंगे,
देख उनको, क्या नहीं वो अच्कचायेंगे,
बढ़ गए कैसे इतने, सोच में पड़ जायेंगे।
''त्रेता में तो कर दिया था संहार उसका
''त्रेता में तो कर दिया था संहार उसका
कैसे बढ़ा कलियुग में परिवार उसका
मैं तो हूँ एक,फिर कैसे हो संहार सबका
कर सकूंगा फिर से क्या उद्धार सबका ?''
उस समय तो एक रावण सामने था
और साथ उसके राछसों की सेना थी
आज हर छेत्र में जगह-जगह रावण हैं
और साथ सबके रावणों की ही सेना है"।
सोच ये श्रीराम भी पद पीछे खींचेंगे
इस समस्या से वो भी आँखें मीचेंगे
लेंगे नहीं जोख़िम वो उसको मारने का
ना हो कहीं भय उनको उससे हारने का।
हो कैसे फिर, कलियुग में संहार उसका ?
यूँ; कैसे रुके वर्तमान में विस्तार उसका ?
क्या यूँ ही करता रहेगा, वो विष-वमन ?
और होता ही रहेगा, हम सबका दमन ?
करके अंत रावण का तुम ''सीता'' लाये थे'
सृष्टी की हर स्त्री का तब आशीष पाए थे'
आज कितनी दामिनियों ने गुहारलगाई है
एक साथ मिलकर सब फिर चिल्लाई हैं।
हे राम! अब सुन ही लो, हम सबकी पुकार
फिर से इक बार रोक लो, तुम ये अत्याचार
ना झिझको तुम, देख रावणों का दुर्व्यवहार
हैं; तुम्हारे साथ भी,हम सभी वानर तैयार।
..........डॉ . रागिनी मिश्र .................
मैं तो हूँ एक,फिर कैसे हो संहार सबका
कर सकूंगा फिर से क्या उद्धार सबका ?''
उस समय तो एक रावण सामने था
और साथ उसके राछसों की सेना थी
आज हर छेत्र में जगह-जगह रावण हैं
और साथ सबके रावणों की ही सेना है"।
सोच ये श्रीराम भी पद पीछे खींचेंगे
इस समस्या से वो भी आँखें मीचेंगे
लेंगे नहीं जोख़िम वो उसको मारने का
ना हो कहीं भय उनको उससे हारने का।
हो कैसे फिर, कलियुग में संहार उसका ?
यूँ; कैसे रुके वर्तमान में विस्तार उसका ?
क्या यूँ ही करता रहेगा, वो विष-वमन ?
और होता ही रहेगा, हम सबका दमन ?
करके अंत रावण का तुम ''सीता'' लाये थे'
सृष्टी की हर स्त्री का तब आशीष पाए थे'
आज कितनी दामिनियों ने गुहारलगाई है
एक साथ मिलकर सब फिर चिल्लाई हैं।
हे राम! अब सुन ही लो, हम सबकी पुकार
फिर से इक बार रोक लो, तुम ये अत्याचार
ना झिझको तुम, देख रावणों का दुर्व्यवहार
हैं; तुम्हारे साथ भी,हम सभी वानर तैयार।
..........डॉ . रागिनी मिश्र .................
राम तो आने को तैयार हैं उनके भक्त ही पीछे हट जाते हैं हर बार ... अपना पौरुष नहीं जगाते ... सब कुछ राम पे ही छोड़ देते हैं ...
जवाब देंहटाएंatyant khubsurat likha hai ...badhai ki patra hain aap
जवाब देंहटाएंraam aur ravan ke liye shayad ramayan yug ki prastha bhumi chahiye ...kyuon ki ravan ki bhanti ..dussahas bhi to nahi karte ye kalyugee ravan !!
जवाब देंहटाएंउस समय तो एक रावण सामने था
जवाब देंहटाएंऔर साथ उसके राछसों की सेना थी
आज हर छेत्र में जगह-जगह रावण हैं
और साथ सबके रावणों की ही सेना है"।
...बहुत सटीक अभिव्यक्ति...पर केवल राम पर हम कब तक आश्रित रह सकते हैं. अब इन रावणों से मुकाबला करने के लिए सब को राम बनना होगा...
Ravan aaj har koi hai...
जवाब देंहटाएंRAM bacha hai na koi...
dekh is sansaar ko..
dharti aaj khud par roi...
''राम! अब आ ही जाओ''
is dharti ke kasht mitao
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति निश्चय ही अत्यधिक प्रभावशाली और ह्रदय स्पर्शी लगी ....इसके लिए सादर आभार ......फुरसत के पलों में निगाहों को इधर भी करें शायद पसंद आ जाये
जवाब देंहटाएंनववर्ष के आगमन पर अब कौन लिखेगा मंगल गीत ?