गुरुवार, 2 अगस्त 2012

"मेरी मृगतृष्णा"

कब मेरी ये प्यास बुझेगी
या ये मृगतृष्णा बन जायेगी ?
प्रथम चुम्बन की वो आसक्ति
अधरों का कम्पन भर रह जायेगी?

कब तक तरसेंगे उस पल को
जी रहे हैं जिसको सदियों से
तारों की वो लौकिकता क्या
पहले प्रहर  भर रह जायेगी?

स्नेहिल मोती वो शब्दों के; जो ,
निकले थे उन कम्पित अधरों से,
सुन्दर माला बन सज उठेंगे वो ,
या फिर यूँ बिखर रह जायेंगे 


यह मिलना है  दो फूलों का
या फिर है मिलना दो कूलों  का
सागर छितिज की सुन्दरता
क्या गर्जन भर रह जायेगी?
 
ये प्रीत मेरी वो आसक्ति है
जो  मेरी पहचान बनी जाती है 
बचपन में ललाट का था जो घाव 
अब बिंदी की सुन्दरता ले आती है 

जीवन के बढ़ते इस  क्रम  में
मेरी प्रेमाग्नि भड़कती जाती है  
होगी पूर्णाहुति इसमें; तुम्हारी 
या  "मेरी मृगतृष्णा" बन जाएगी?............

..............रागिनी ............
mrigtrishna

11 टिप्‍पणियां:

  1. शब्द कम , अर्थ अथाह | बहुत सुन्दर |

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  2. जीवन के बढ़ते इस क्रम में
    मेरी प्रेमाग्नि भड़कती जाती है
    होगी पूर्णाहुति इसमें; तुम्हारी
    या "मेरी मृगतृष्णा" बन जाएगी?............
    waah di kya baat hai , Bahut sunder rachna

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  3. ये प्रीत मेरी वो आसक्ति है
    जो मेरी पहचान बनी जाती है
    बचपन में ललाट का था जो घाव
    अब बिंदी की सुन्दरता ले आती है

    :) कितनी खूबसूरती और प्यार से बताया है आपने .... की जो घाव था, वो बिंदी की सुन्दरता में छिप गयी... कितना प्रेम है...
    हर पंक्ति से प्यार छलक रहा है...
    बहुत ही बेहतरीन!!
    आभार!!

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    उत्तर
    1. जितने भाव लेखनी से रखे जाएँ और आप जैसे सुधी पाठक उतने ही भाव से उसे ग्रहण कर लेते हैं तो लेखनी धन्य हो जाती है ......बहुत-बहुत आभार एक-एक पंक्ति को ग्रहण करने का....

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (05-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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    उत्तर
    1. मेरी रचना को अपने चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए बहुत-बहुत आभार.......

      हटाएं
  5. कब तक तरसेंगे उस पल को
    जी रहे हैं जिसको सदियों से
    तारों की वो लौकिकता क्या
    पहले प्रहर भर रह जायेगी?

    हर सवाल लाजवाब ...
    बेहतरीन रचना !

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  6. लय और गेयता लिए ... उत्कृष्ट रचना ... मन को छू गयी ...

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