कब मेरी ये प्यास बुझेगी
या ये मृगतृष्णा बन जायेगी ?
प्रथम चुम्बन की वो आसक्ति
अधरों का कम्पन भर रह जायेगी?
कब तक तरसेंगे उस पल को
जी रहे हैं जिसको सदियों से
तारों की वो लौकिकता क्या
पहले प्रहर भर रह जायेगी?
स्नेहिल मोती वो शब्दों के; जो ,
निकले थे उन कम्पित अधरों से,
सुन्दर माला बन सज उठेंगे वो ,
या फिर यूँ बिखर रह जायेंगे
यह मिलना है दो फूलों का
या फिर है मिलना दो कूलों का
सागर छितिज की सुन्दरता
क्या गर्जन भर रह जायेगी?
ये प्रीत मेरी वो आसक्ति है
जो मेरी पहचान बनी जाती है
बचपन में ललाट का था जो घाव
अब बिंदी की सुन्दरता ले आती है
जीवन के बढ़ते इस क्रम में
मेरी प्रेमाग्नि भड़कती जाती है
होगी पूर्णाहुति इसमें; तुम्हारी
या "मेरी मृगतृष्णा" बन जाएगी?............
..............रागिनी ............
mrigtrishna
या ये मृगतृष्णा बन जायेगी ?
प्रथम चुम्बन की वो आसक्ति
अधरों का कम्पन भर रह जायेगी?
कब तक तरसेंगे उस पल को
जी रहे हैं जिसको सदियों से
तारों की वो लौकिकता क्या
पहले प्रहर भर रह जायेगी?
स्नेहिल मोती वो शब्दों के; जो ,
निकले थे उन कम्पित अधरों से,
सुन्दर माला बन सज उठेंगे वो ,
या फिर यूँ बिखर रह जायेंगे
यह मिलना है दो फूलों का
या फिर है मिलना दो कूलों का
सागर छितिज की सुन्दरता
क्या गर्जन भर रह जायेगी?
ये प्रीत मेरी वो आसक्ति है
जो मेरी पहचान बनी जाती है
बचपन में ललाट का था जो घाव
अब बिंदी की सुन्दरता ले आती है
जीवन के बढ़ते इस क्रम में
मेरी प्रेमाग्नि भड़कती जाती है
होगी पूर्णाहुति इसमें; तुम्हारी
या "मेरी मृगतृष्णा" बन जाएगी?............
..............रागिनी ............
mrigtrishna
waah...laazwab rachna...bhavnao ki sunder abhivyakti :)
जवाब देंहटाएंशब्द कम , अर्थ अथाह | बहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंजीवन के बढ़ते इस क्रम में
जवाब देंहटाएंमेरी प्रेमाग्नि भड़कती जाती है
होगी पूर्णाहुति इसमें; तुम्हारी
या "मेरी मृगतृष्णा" बन जाएगी?............
waah di kya baat hai , Bahut sunder rachna
ये प्रीत मेरी वो आसक्ति है
जवाब देंहटाएंजो मेरी पहचान बनी जाती है
बचपन में ललाट का था जो घाव
अब बिंदी की सुन्दरता ले आती है
:) कितनी खूबसूरती और प्यार से बताया है आपने .... की जो घाव था, वो बिंदी की सुन्दरता में छिप गयी... कितना प्रेम है...
हर पंक्ति से प्यार छलक रहा है...
बहुत ही बेहतरीन!!
आभार!!
जितने भाव लेखनी से रखे जाएँ और आप जैसे सुधी पाठक उतने ही भाव से उसे ग्रहण कर लेते हैं तो लेखनी धन्य हो जाती है ......बहुत-बहुत आभार एक-एक पंक्ति को ग्रहण करने का....
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (05-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
मेरी रचना को अपने चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए बहुत-बहुत आभार.......
हटाएंअच्छी रचना...
जवाब देंहटाएंसादर।
कब तक तरसेंगे उस पल को
जवाब देंहटाएंजी रहे हैं जिसको सदियों से
तारों की वो लौकिकता क्या
पहले प्रहर भर रह जायेगी?
हर सवाल लाजवाब ...
बेहतरीन रचना !
लय और गेयता लिए ... उत्कृष्ट रचना ... मन को छू गयी ...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़ना .....
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