तुमसे बिछुड़कर शिकवा ना किया,
भरी महफ़िल में कभी रुसवा ना किया,
जब दर्द हुआ; हँस-हँस के सहा ,
दुनियावालों से बस यही कहा.....
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"ये लोग क्यों किसी पे मरते हैं
दिल में इतना दर्द क्यों भरते हैं
की बाखुशी अपना क़त्ल करवाके
इल्जाम भी खुद पे ही धरते हैं "
ग़म खुद का छुपा मुस्कराए हैं
हमने रिश्ते कुछ यूँ भी निभाए हैं ...........
.............रागिनी .....................
.............रागिनी .....................
पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और आप सब की ओर से अमर शहीद खुदीराम बोस जी को शत शत नमन करते हुये आज की ब्लॉग बुलेटिन लगाई है जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी ... और धोती पहनने लगे नौजवान - ब्लॉग बुलेटिन , पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंरिश्ते बने ही हैं निभाने को ...हँस कर या ढो कर ....निभाने तो हैं ही :))))
जवाब देंहटाएंअपने क़त्ल का इलज़ाम खुद पर???
जवाब देंहटाएंशायराना दिल जो करे वो कम..
सुन्दर!!!
अनु
bahut sundar rachna
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