' मुझसे तेरा कुछ रिश्ता है ,मन इतना ही गुन पाया है
है तेरा मेरा रिश्ता क्या ,मन अब तक ना सुन पाया है '
अक्सर ही हमारे जीवन में कुछ ऐसे व्यक्तित्व आते हैं कि वहां हम अपने मन को बंधने से रोक नही पाते हैं. ना जाने कितने ही ऐसे रिश्तें हम अपने जीवन में जीते हैं ....जो हमारे मन के बेहद करीब होते हैं. परन्तु ध्यान देने योग्य बात यहाँ पर यह है कि हम ऐसे रिश्तों को क्या रूप देना चाहते हैं?. आरम्भतः यह रिश्ते आकर्षण और बात-चीत के माध्यम से ही बनते हैं ....विचार मिलते हैं .....एक दूसरे के प्रति आदर की भावना पनपती है ....फिर प्रेम. यह रिश्तों का जोड़ बिलकुल गणित की ही तरह होता है ....हमें इसकी जानकारी अवश्य ही होनी चाहिए. यह १००% सत्य है कि बिना किसी भावना के हम किसी की तरफ आकृष्ट नहीं हो सकते...हाँ! आगे चलकर यह भावना क्या रूप लेती है, यह ध्यातव्य है .
हम अक्सर अपने मन को धोखा देते हैं या यूँ कहे कि समझ ही नहीं पाते हैं की जो सम्बन्ध बन रहा है वह दोस्ती है या फिर प्यार? इसलिए सर्वप्रथम मन को साफ़ आईने की तरह रखें कि ठीक-ठीक दिखाई दे, अन्यथा बाद में अफ़सोस भी करना पड़ सकता है . जहाँ सिर्फ बात-चीत है वहां कल दोस्ती भी हो सकती है और जहाँ दोस्ती है वहां प्यार भी पनप जाता है .यह एक अनकहा सच है कि प्यार मनुष्य कि सर्वकालिक आवश्यकता है . और दोस्ती भी.
दोस्ती तीन प्रकार की हो सकती है -------{१}सामान्य ....जहाँ दो व्यक्ति एक-दूसरे की आवश्यकता बनकर साथ निभाएं.
{२}विशेष........जहाँ दोनों एक दूसरे के पूरक बन जाएँ .
{३}असाधारण...जहाँ दो विपरीत विचारधारा वाले व्यक्ति परस्पर आकृष्ट हो.
सामान्य अवस्था वाली दोस्ती अक्सर पड़ोस, कॉलेज या ऑफिस से आरम्भ होती है और सहज रूप में चलती रहती है , क्योंकि यह दोस्ती हमारी आवश्यकता की होती है. इसके बिना हम अपने रोज-मर्रा के जीवन में असहजता महसूस करते हैं इसमें आकर्षण का कोई तत्त्व ना भी हो तो भी यह चलती रहती है .इसमें एक जिम्मेदारी की भावना हमेशा रहती है ....असाधारण प्रकार की दोस्ती किसी विरोधी आकर्षण से प्रारंभ होती है , यह अत्यंत तीव्रता और आसानी से हो जाती है ,जो खूबी स्वयं में ना हो और दूसरे में दिखाई दे तो आकर्षण स्वाभाविक है परन्तु इसके टूटने की सम्भावना भी हमेशा ही बनी रहती है. दो विपरीत विचार अक्सर टकराव का कारण बनने लगते हैं...वह एक-दूसरे में सुधार करना और देखना दोस्ती के आवश्यक नियम मानने लग जाते हैं .शुरू में यह अच्छा लगता है लेकिन बाद में भार सदृश प्रतीत होने लग जाता है ..परन्तु विशेष अवस्था वाली दोस्ती कुछ विशेष ही होती है.यहाँ एक-दूसरे को समझने और जानने के साथ-साथ आदर और प्रेम की भावना भी रहती है....यहाँ व्यक्ति को सुधारा नहीं जाता बल्कि उसे सुना और समझा जाता है और वास्तव में हर मनुष्य अपने जीवन में इसी प्रकार की दोस्ती की चाह करता है. यह समय के साथ और परिपक्व होती जाती है और यही एक अच्छा और
सच्चा रिश्ता है ......एक दूसरे के अस्तित्व को सम्मान देने का ...
इस दोस्ती को यदि जीवन-साथी के साथ देखना चाहे तो तीन बाते समझनी पड़ेगी ........यदि प्रथम दोस्ती arrange
शादी है तो दूसरी प्रकार की लव,......परन्तु हर कोई अपने जीवन साथी के साथ तीसरे प्रकार की ही दोस्ती चाहता है और इसी के साथ ही जीवन सुखमय बनाया जा सकता है.....
उपरोक्त तीनो प्रकार हम अपने भीतर पा सकते हैं ...अतः रिश्तों को समझकर उनका निर्वहन करे तो जीवन को सहज और सुखमय बनाया जा सकता है.....
" है तू मेरा ही प्रतिबिम्ब, यह अब मन मेरा गुन पाया है
क्योंकि मेरे मन की धुन ,तो तेरा ही मन सुन पाया है
होना ना मुझसे विलग कभी, मन तुमसे अब ये कहता है
गर मैं हूँ तेरी परछाई , तो तू भी तो मेरा हमसाया है.... "
है तेरा मेरा रिश्ता क्या ,मन अब तक ना सुन पाया है '
अक्सर ही हमारे जीवन में कुछ ऐसे व्यक्तित्व आते हैं कि वहां हम अपने मन को बंधने से रोक नही पाते हैं. ना जाने कितने ही ऐसे रिश्तें हम अपने जीवन में जीते हैं ....जो हमारे मन के बेहद करीब होते हैं. परन्तु ध्यान देने योग्य बात यहाँ पर यह है कि हम ऐसे रिश्तों को क्या रूप देना चाहते हैं?. आरम्भतः यह रिश्ते आकर्षण और बात-चीत के माध्यम से ही बनते हैं ....विचार मिलते हैं .....एक दूसरे के प्रति आदर की भावना पनपती है ....फिर प्रेम. यह रिश्तों का जोड़ बिलकुल गणित की ही तरह होता है ....हमें इसकी जानकारी अवश्य ही होनी चाहिए. यह १००% सत्य है कि बिना किसी भावना के हम किसी की तरफ आकृष्ट नहीं हो सकते...हाँ! आगे चलकर यह भावना क्या रूप लेती है, यह ध्यातव्य है .
हम अक्सर अपने मन को धोखा देते हैं या यूँ कहे कि समझ ही नहीं पाते हैं की जो सम्बन्ध बन रहा है वह दोस्ती है या फिर प्यार? इसलिए सर्वप्रथम मन को साफ़ आईने की तरह रखें कि ठीक-ठीक दिखाई दे, अन्यथा बाद में अफ़सोस भी करना पड़ सकता है . जहाँ सिर्फ बात-चीत है वहां कल दोस्ती भी हो सकती है और जहाँ दोस्ती है वहां प्यार भी पनप जाता है .यह एक अनकहा सच है कि प्यार मनुष्य कि सर्वकालिक आवश्यकता है . और दोस्ती भी.
दोस्ती तीन प्रकार की हो सकती है -------{१}सामान्य ....जहाँ दो व्यक्ति एक-दूसरे की आवश्यकता बनकर साथ निभाएं.
{२}विशेष........जहाँ दोनों एक दूसरे के पूरक बन जाएँ .
{३}असाधारण...जहाँ दो विपरीत विचारधारा वाले व्यक्ति परस्पर आकृष्ट हो.
सामान्य अवस्था वाली दोस्ती अक्सर पड़ोस, कॉलेज या ऑफिस से आरम्भ होती है और सहज रूप में चलती रहती है , क्योंकि यह दोस्ती हमारी आवश्यकता की होती है. इसके बिना हम अपने रोज-मर्रा के जीवन में असहजता महसूस करते हैं इसमें आकर्षण का कोई तत्त्व ना भी हो तो भी यह चलती रहती है .इसमें एक जिम्मेदारी की भावना हमेशा रहती है ....असाधारण प्रकार की दोस्ती किसी विरोधी आकर्षण से प्रारंभ होती है , यह अत्यंत तीव्रता और आसानी से हो जाती है ,जो खूबी स्वयं में ना हो और दूसरे में दिखाई दे तो आकर्षण स्वाभाविक है परन्तु इसके टूटने की सम्भावना भी हमेशा ही बनी रहती है. दो विपरीत विचार अक्सर टकराव का कारण बनने लगते हैं...वह एक-दूसरे में सुधार करना और देखना दोस्ती के आवश्यक नियम मानने लग जाते हैं .शुरू में यह अच्छा लगता है लेकिन बाद में भार सदृश प्रतीत होने लग जाता है ..परन्तु विशेष अवस्था वाली दोस्ती कुछ विशेष ही होती है.यहाँ एक-दूसरे को समझने और जानने के साथ-साथ आदर और प्रेम की भावना भी रहती है....यहाँ व्यक्ति को सुधारा नहीं जाता बल्कि उसे सुना और समझा जाता है और वास्तव में हर मनुष्य अपने जीवन में इसी प्रकार की दोस्ती की चाह करता है. यह समय के साथ और परिपक्व होती जाती है और यही एक अच्छा और
सच्चा रिश्ता है ......एक दूसरे के अस्तित्व को सम्मान देने का ...
इस दोस्ती को यदि जीवन-साथी के साथ देखना चाहे तो तीन बाते समझनी पड़ेगी ........यदि प्रथम दोस्ती arrange
शादी है तो दूसरी प्रकार की लव,......परन्तु हर कोई अपने जीवन साथी के साथ तीसरे प्रकार की ही दोस्ती चाहता है और इसी के साथ ही जीवन सुखमय बनाया जा सकता है.....
उपरोक्त तीनो प्रकार हम अपने भीतर पा सकते हैं ...अतः रिश्तों को समझकर उनका निर्वहन करे तो जीवन को सहज और सुखमय बनाया जा सकता है.....
" है तू मेरा ही प्रतिबिम्ब, यह अब मन मेरा गुन पाया है
क्योंकि मेरे मन की धुन ,तो तेरा ही मन सुन पाया है
होना ना मुझसे विलग कभी, मन तुमसे अब ये कहता है
गर मैं हूँ तेरी परछाई , तो तू भी तो मेरा हमसाया है.... "
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