गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

विवाह-भोज बनाम पर्यावरण

 अभी-अभी एक परिचित के बेटे के विवाह-भोज का आनंद उठाकर घर वापस आई हूँ. बहुत मज़ा आया. बच्चों ने खूब मस्ती की. आजकल शादियों में खाने से ज्यादा स्नेक्स पर जोर रहता है. तरह-तरह के "स्नेक्स"....फ्रेंच-फ्री,चीज़ -बोल्स, स्प्रिंग-रोल, कबाब,पनीर-टिक्का...सब कुछ मजेदार सौस और चटनी के साथ. यहाँ भी ये सभी कुछ था..ढेर सारे लड़के हाँथ में "ट्रे" उठाये सबके सामने पहुँचते और हम सभी पूरी नफ़ासत के साथ एक 'पेपर-नेपकिन' उठाकर उस पर कभी पनीर-टिक्का तो कभी कबाब रखकर खाते और फिर पूरी उँगलियाँ पोंछकर ज़मीन पर डाल  देते..हर स्नेक्स, हर बार नए नेपकिन पर....करीब सात सौ लोग...पाँच प्रकार के स्नेक्स...लगभग सभी ने हर तरह के स्नेक्स का आनंद उठाया और एक बार नहीं, बल्कि कई-कई  बार .....ज़रा हिसाब लगाइए कितने पेपर-नेपकिन थोड़ी सी देर में कूड़े की भेंट चढ़ गए...सोचिये आजकल शादियों का मौसम है और स्नेक्स का फैशन है ......कितने पेड़ काटेंगे इतने पेपर-नेपकिन के लिए....???      ये शादी है, अच्छा है...पर पर्यावरण??