अभी 13 नवम्बर 2013 में 28 साल बाद हम बचपन की सहेलियाँ प्लान करके इलाहाबाद में इकट्ठे हुए थे। …28 साल बाद, बचपन की सखियों से मिलना क्या सुख होता है , इसको शब्दों में बता पाना असम्भव है। हम एक दूसरे को देखकर आनंद से विभोर हो गए थे..... 1996 में इन्टर के बाद ये कभी नहीं सोचा था की सब अलग अलग हो जायेंगे और मिलने में इतना वक़्त लग जाएगा और पिछले साल मिलने के बाद ये सोचकर दुःखी थे कि अब कब मिलेंगे? लेकिन वाह रे दोस्ती की लगन .... जैसे ही श्रद्धा का फ़ोन आया की वो 6th अगस्त को बड़ौदा से इलाहाबाद आ रही है , हम सबके फ़ोन की घंटी बजने लगी और दिल की भी..... चूँकि बच्चों के 1st टर्म खत्म हो गए थे इसलिए घर से अनुमति मिलने में ज्यादा देर नहीं लगी..... और फटाफट सबने आने के लिए हाँ कर दी और प्लान भी बना तो " फ्रेंडशिप डे" के बाद..... भावनाएं कुछ ज्यादा ही उफान पर थी.....
धड़ाधड़ सबके रिजर्वेशन हो गए..... … और 6th अगस्त का दिन आ गया। मीना के घर रुकने का प्लान बना। अलका जौनपुर से , रजनी बनारस से, श्रद्धा बड़ौदा से और मैं लखनऊ से पहुँच रहे थे और अंजू और मीना तो हमारा स्वागत करने के लिए इलाहाबाद में ही थीं। बस, इतने लोग ही फेसबुक के माध्यम से मिल पायें थे, जिसके लिए हम हमेशा ही फेसबुक के आभारी रहेंगे। चूँकि श्रद्धा के मायके में फंक्शन था इसलिए वो मीना के घर सुबह से नहीं थी,,,, मैं करीब 12 बजे पहुँची , तब तक अलका और अंजू पहुंचकर हम सबका इंतज़ार कर रही थी। लिपटकर सब गले मिले और बस, ठहाकों का दौर चल पड़ा। श्रद्धा 10 मिनट में हेस्टिंग्स रोड से आ गयी और फिर चालू हो गया 40+ लेडीज का स्वीट 16een वाला दौर। हमें लगा कि हम आज भी उतने ही जवान और एनर्जेटिक हैं। ये बचपन की दोस्ती भी कमाल की होती है। हर महंगे टॉनिक से ज्यादा असरदार। रजनी की ट्रेन थोड़ा लेट थी इसलिए हम सब लंच के लिए उसका इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन लगातार कुछ ना कुछ खाये ही जा रहे थे और वैसे भी ये सर्वमान्य सत्य है कि बचपन में जिस शहर की १० पैसे की लकड़ी के डिब्बे में रखी हुई बर्फवाली आइसक्रीम खायी हो बड़े होकर baskin robbins भी उसके आगे फीकी ही रहती है। और मेरी जबान तो 'लोकनाथ चौराहे की फ्रूट आइसक्रीम' पर वैसे ही फिसल जाती है। अंदर गली में 'हरी नमकीन के समोसे, मठरी' और थोड़ा आगे मंदिर के सामने वाली 'चाट की दूकान पर वो करेला और बैगनी'…। आज तक लगभग पूरा भारत घूम आई हूँ, ऐसी चाट कहीं नहीं मिली और फ्रूट आइसक्रीम तो मानो गूलर का फूल हो। हम हंस रहे थे, बतिया रहे थे, खा रहे थे, लड़ रहे थे , …। रजनी बस पहुँचने वाली थी। उसके लेने मीना के देवर जा चुके थे। अचानक 'रजनी आ गयी रजनी आ गयी ' के शोर से मानों पूरा सिविल लाइन्स गूँज गया.… रजनी पिछले साल किसी कारणवश नहीं आ सकी थी इसलिए उससे मिलने की बहुत उत्सुकता थी। रजनी बचपन से ही गंभीर और समझदार थी, आज उससे कुछ और ज्यादा। लेकिन थोड़ी ही देर में वह हमारे रंग में रंग गयी और फिर तो बस्स्स ,,, :):):)
3 बज गए थे। इसलिए खाना खाने का इरादा बना सब मीना की रसोई में घुस गए.. … उफ्फ्फ , कितनी वैराइटी बना रखी थी उसने और शायद सब मेरी पसंद का। मैं अक्सर जाती रहती हूँ और भी अक्सर लखनऊ आ जाती हैं। अरहर की दाल, शिमला मिर्च पनीर की मस्त सब्जी, दम आलू , लौकी की सूखी सब्जी, सलाद , दही, चावल , रोटी और जाने कितने तरह की मिठाई लेकिन अपना दिल तो 'कामधेनु' के बूंदी वाले लड्डू पर अटक जाता है। हम हंस रहे थे , खा रहे थे , एक दूसरे के मुंह में कौर खिला रहे थे, फोटो भी ज़रूरी थी इसलिए वो भी खिंचवा रहे थे।

हमें श्रद्धा की मम्मी और पापा से भी मिलना था। उनका स्नेह आज तक हम लोगों को उनसे बांधे हुए है। हम जल्दी- जल्दी तैयार होने में जुट गए। अब 5 औरतें तैयार हो रही हों, तो वक़्त तो लगता ही है। अलका और मीना आज भी उतनी ही तन्मयता से तैयार होती हैं जितनी उस समय होती थी। उसको तैयार होता देख मन खुश हो जाता है। … पूरा 16 श्रृंगार। अंजू और रजनी शुरू से ही गोरी चिट्टी और सुन्दर थीं , उनको मेकअप की ज़रुरत वैसे भी नहीं पड़ती और अपन तो हमेशा से ही जस के तस। गोरा होने के लिए पाउडर सा सहारा लेना ही पड़ता है :):):) खैर, अब तक श्रद्धा के बीस फ़ोन कॉल्स आ चुके थे , चिल्ला रही थी , गुस्सा हो रही थी लेकिन हमारी खिलखिलाहट कम ही नहीं हो पा रही थी और यकीन भी था कि 2 मिनट में उसे मना ही लेंगे।

हम सब एक- दुसरे के लिए उपहार लेकर आएं थे। रजनी बनारस की सुन्दर सुन्दर चूड़ियाँ और स्पेशल बिस्कुटलायी थी , अलका ने हम सबके लिए खूबसूरत से पर्स लिए थे, मीना ने हम सबको बहुत ही सुन्दर फ्रेंडशिप बैंड पहनाया , मैं अपनी परमप्रिय 'सुगन्धको' के इत्र लेकर गयी थी और प्यारी अंजू हम सबके पिछले बार के एक प्यारे से फोटो को कॉफी मग पर बनवाकर लायी थी..... वो हमारे लिए सबसे स्पेशल था। रजनी उदास थी , क्यूंकि उसमें उसकी फोटो नहीं थी।
अब रात का हाल तो क्या लिखूं ? ठहाके ठहाके और ठहाके। श्रद्धा तो मानों कपिल पशु आहार खाकर आई हो बड़ौदा से। उसकी एनर्जी तो समय के साथ बढ़ती ही जा रही थी। कितनी बातें , कितनी यादें हमनें शेयर की। इतना खाने के बावजूद बीच बीच में कोई जाकर चाय बना लाता तो कभी कोई नींबू पानी। सुबह के 4 बजे जाकर सबको डांटकर मैंने ही सुलाया क्यूंकि सुबह भी कई प्रोग्राम थे लेकिन 5.30 पर ही सब फिर जग गए। और फिर उसी एनर्जी के साथ। मैं सोचकर हैरान थी कि दोस्तों में कौन सा revital होता है? अभी घर पर कमर दर्द और पैर दर्द कर रही होती।

आपकी लेखनी में जादू है ......... सीधे असर करता है
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