शीर्षक पढ़कर चौंकिए नहीं, बात सोलह आने सच्ची है ....अमूमन सबके साथ होता है, कोई share नहीं करता है ......मै कर रही हूँ ........................................................................
समय आ गया है, आम बाज़ार का राजा बनकर छा चुका है। तरह-तरह के आम बाज़ार में अपनी पैठ बनाकर दिल को लुभा रहे हैं, .............लेकिन जो आम पडोसी के पेड़ पे लगा होता है उसे चुराकर खाने का आनंद ही कुछ और है, जो पेड़ सड़क के किनारे किसी के घर के बाहर आम से लदा खड़ा होता है , कदम खुद-ब -खुद उस रास्ते चल पड़ते हैं।सुबह-सवेरे जबरदस्ती उन पेड़ों के नीचे होकर ही सैर पर निकलना और अचानक उन्ही पेड़ों के पास आकर जूते के फीतों का खुलना, झुककर उन्हें बांधने की जबरदस्ती की कवायद में गिरे हुए आम को यूँ उठाना ; मानों उसने आपकी walk में बाधा पहुंचाई।अगले ही पल उस आम का पाजामे की जेब में पहुंचना और फिर पूरा रास्ता मूंछों ही मूंछों में मुस्कराते हुए कटना .......घर में वापसी एक विजयी वीर की तरह करना और फिर उस आम को खाना ......यह आनंद बाज़ार से खरीदकर आम खाने में कहाँ?
मेरी भी स्थिति आजकल यही हो रही है. बाज़ार से खरीदकर क्यों खाऊ; जबकि पीछे के घरवालों के पेड़ की पूरी एक डाल मेरे घर की छत पर पूरे साल आराम करती है. तो आम के मौसम में मेरा पूरा हक़ बनता है उस डाल को झकझोर कर जगाने का।.....हाय! क्या स्वाद होता है उस कच्चे-पक्के आम को पडोसी से चुरा-चुराकर खाने का ........इस भरी गर्मी में,तपती दुपहरी में,गर्मी की छुट्टी में मोहतरमा 'रागिनी मिश्रा' को अपने ठन्डे कमरे के अलावा घर की छत पर भाग-भाग कर जाना भी खूब भाता है .....पूरी कोशिश यही होती है कहीं बाहर घूमने जाने से पहले सारे आम पेट में पहुँच जाए वरना बाहर जाकर भी वोह आम बिछड़े प्रियतम की तरह रातों की नींद उडाता रहता है.........
dinner के बाद walk करना कम आम ताड़ने का कार्यक्रम ज्यादा चलता है। अच्छा..........ये आम चार दिन में पक कर गिर जायेगा और उसके पहले अगर घर के मालिक ने तोड़ लिया तो! नहीं........इसे हमने तड़ा है और हम ही इसी तोड़ेंगे. फिर तडके तीन बजे उठकर डंडा-हसिया उठा 'चला मुरारी हीरो बनने' वाला plan शुरू हो जाता है और तीन-चार; जितने भी धडकते दिल से आम तोड़ पाए; तोड़े और फिर बिस्तर से उठे सुबह आठ बजे के बाद। और फिर जो अपनी बहादुरी के किस्से सुनाये तो बस्स!!! तरह-तरह के आम बाज़ार से खरीदकर भी आते हैं लेकिन सच्ची बताये;; जो इस तरह से आम खाए हैं या खा रहे हैं उस स्वाद का कोई मुकाबला है ही नहीं.........भाए आम मन को चोरी का ......देखिये मैंने इस पूरे लेख को भी आम सा रंगीन बना दिया है यानि पूर्णरूपेण 'आम्मयी रचना'.............