शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

मानव, मन, माया

होती हैं इच्छायें असीमित, मानव के इस मन की ,
पूरी करने में वह उनको, खोता सुध-बुध तन की। ……


चलता ज्यों कोल्हू का चक्कर,फिरता वैसे ही वह भी ,
मूँद आँख गिरता शिशु कोई ,  गिरता वैसे ही वह भी । …. 


जलकर गिरता रहे पतंगा , ज्यूँ दीपक के पीछे
मानव का यह मन भी भागे, आकर्षण के पीछे। ……


नाते-रिश्ते सब कुछ खोता, रोता ही रहता वह,
सब धोखेबाज भरे हैं जग में, गाता ही रहता वह। ….


स्वयं सशंकित रहता और, सबको भी भ्रम में रखता,
धन-संतोष भूल वह बस, माया- माया ही रटता। …….


जलता ही रहता हरदम वह, ईर्ष्या - द्वेष की ज्वाला में,
होता जाता आकंठ निमग्न, ठगिनी माया की हाला में.। …….  .….


पूरी  करने में हर इच्छा, अक्सर भूल वह जाता ,
लख चौरासी योनियों में, मानव-जीवन है पाता। …


 बैर भाव को भूल जब सबको,  स्वयं सदृश तुम पाओगे,
मन भरेगा धन-संतोष से तब, भव-सागर से तर जाओगे। …।


…………………। डॉ रागिनी मिश्र। ………………





रविवार, 18 अगस्त 2013

पिया! हमही तुमरा पियार हूँ, सजन! हमही तुमरी यार हूँ,


पिया! हमही तुमरा पियार हूँ 
हमहूँ का चितवो एक बार। … 
सजन! हमही तुमरी यार हूँ,
हमते बतियाओ तौ एक बार। …।

               (१ )



रोजै ही मन करत हमार 

फेंक देई मोबाइल तोहार 
चिपक के हरदम जेहिते तुम  
बातन का लगउते अम्बार,
मुला; हमते कुच्छो कहिते
मुँह जेइसे सिय जात तोहार,
ब्याह किये का उकै संग ?
की है तू भरतार हमार ?


                (२ )

फोड़ देई ई कम्पूटर का
घंटन करते ऊसे आँखें चार
फेसबुक और आरकुट  का
मरिबेइ जूता चार हज़ार
हरदम्मै ही चैट बाक्स पर
लागे सुंदरियन की कतार
करि देइब डाइल १०९० हम
अब तो सुधर जाओ सरकार। ….


पिया! हमही तुमरा पियार हूँ
हमका भी चितवो एक बार ,
सजन! हमही तुमरी यार हूँ,
हमते बतियाओ तौ एक बार। …।


                                             डॉ रागिनी मिश्र