एक मुठ्ठी सूखी रेत में; घरौंदा देखना......
मेरी इक मृगतृष्णा है........
बादल गरजे, बिजली चमकी,बौछारों ने रास रचाई
सहमी सी उस ख़ामोशी को बूंदों ने भी नज़र लगाई
गर्जन में पिता और बिजली में बचपन;
सहज दिख जाता है,....................
बस,उन बूंदों में मासूमियत ढूंढ पाना
मेरी एक मृगतृष्णा है...........
जीवन की हर राह, मोड़ पर; साथी आये, सपने लाये
संग अपने कसमे-वादों की प्यारी सी सौगात भी लाये
जीवन में दुःख, वादों में सुकून
सहज दिख जाता है .......................
ऐसे ही इक वादे को निभते देख पाना
मेरी इक मृगतृष्णा है.............
लेकिन उस जर्जर घरौंदे में, छोटा सा परिवार बसा है
थकी-हारी माँ की छाती में, अब भी थोडा दूध बचा है
माँ की विवशता, बच्चों की विकलता
सहज दिख जाती है ..............
पल-पल मरते उनमे, जीवन की ललक देख पाना
मेरी इक मृगतृष्णा है...........
इक मुठ्ठी सूखी रेत में; घरौंदा देखना.........
मेरी इक मृगतृष्णा है............
.................................रागिनी.....................
.................................रागिनी.....................