मंगलवार, 8 जनवरी 2013

यही है प्यार!

हर सूखे पत्तों में, कुछ नमी ज़रूर बची होती है,
पेड़ों को ना सही, धरा को उसकी ज़रुरत होती है .....

कौन कहता है कि, ठुकराए हुए की कद्र नहीं होती है
हमसे पूछोsss  जिंदगी उसके बाद ही तो शुरू होती है ....

बनके नासूर जो ज़ख़्म,  हर पल टीसते रहते हैं,
सच कहूँ; तो उन्ही में कस्तूरी-गंध, बिंधी होती है ......

जिंदगी मकसद पाती है ,अक्सर ही बे-मंजिल होकर,
जिनके दिलों में प्यार की, वही कशिश बची होती है ......

फिर क्यूँ टूट जाते हो, इक साथ छूट जाने के बाद,
सूखी टहनी पर ही तो नए पत्तों की आमद होती है .....

आग में तपकर ही तो सोना कहलाता है कुंदन,
चोट खाकर ही तो देखो उसकी क्या कीमत होती है .....

ना तपेगी जब तक भीषण ज्वाला में तेरी जिंदगानी,
समझेगा ना तू, उसकी क्या असली सूरत होती है .... 

..................डॉ . रागिनी मिश्र ...................