होती हैं इच्छायें असीमित, मानव के इस मन की ,
पूरी करने में वह उनको, खोता सुध-बुध तन की। ……
चलता ज्यों कोल्हू का चक्कर,फिरता वैसे ही वह भी ,
मूँद आँख गिरता शिशु कोई , गिरता वैसे ही वह भी । ….
जलकर गिरता रहे पतंगा , ज्यूँ दीपक के पीछे
मानव का यह मन भी भागे, आकर्षण के पीछे। ……
नाते-रिश्ते सब कुछ खोता, रोता ही रहता वह,
सब धोखेबाज भरे हैं जग में, गाता ही रहता वह। ….
स्वयं सशंकित रहता और, सबको भी भ्रम में रखता,
धन-संतोष भूल वह बस, माया- माया ही रटता। …….
जलता ही रहता हरदम वह, ईर्ष्या - द्वेष की ज्वाला में,
होता जाता आकंठ निमग्न, ठगिनी माया की हाला में.। ……. .….
पूरी करने में हर इच्छा, अक्सर भूल वह जाता ,
लख चौरासी योनियों में, मानव-जीवन है पाता। …
बैर भाव को भूल जब सबको, स्वयं सदृश तुम पाओगे,
मन भरेगा धन-संतोष से तब, भव-सागर से तर जाओगे। …।
…………………। डॉ रागिनी मिश्र। ………………
पूरी करने में वह उनको, खोता सुध-बुध तन की। ……
चलता ज्यों कोल्हू का चक्कर,फिरता वैसे ही वह भी ,
मूँद आँख गिरता शिशु कोई , गिरता वैसे ही वह भी । ….
जलकर गिरता रहे पतंगा , ज्यूँ दीपक के पीछे
मानव का यह मन भी भागे, आकर्षण के पीछे। ……
नाते-रिश्ते सब कुछ खोता, रोता ही रहता वह,
सब धोखेबाज भरे हैं जग में, गाता ही रहता वह। ….
स्वयं सशंकित रहता और, सबको भी भ्रम में रखता,
धन-संतोष भूल वह बस, माया- माया ही रटता। …….
जलता ही रहता हरदम वह, ईर्ष्या - द्वेष की ज्वाला में,
होता जाता आकंठ निमग्न, ठगिनी माया की हाला में.। ……. .….
पूरी करने में हर इच्छा, अक्सर भूल वह जाता ,
लख चौरासी योनियों में, मानव-जीवन है पाता। …
बैर भाव को भूल जब सबको, स्वयं सदृश तुम पाओगे,
मन भरेगा धन-संतोष से तब, भव-सागर से तर जाओगे। …।
…………………। डॉ रागिनी मिश्र। ………………
bahut behtareen.......
जवाब देंहटाएंyahi manusya ka jeevan hai kya kare har koi bhaag reh hai swarth ke peeche bahut hi achhi rachna
जवाब देंहटाएंbehtareen......
जवाब देंहटाएंमानव सपने पालता है और दौड़ता रहता है उनके पीछे
जवाब देंहटाएंहकीकत से किसी को सरोकार नहीं
सुन्दर सन्देश देती रचना
bahut sundar adhyatm se prerit rachana kamal ki lagi .
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