शनिवार, 29 दिसंबर 2012

''गुनाहगार हम सब भी हैं''

आज वह मौत से हार गयी। लेकिन हम सबके अन्दर एक जुनून, एक जज़्बा पैदा कर गयी; 'अन्याय के खिलाफ आवाज़ को बुलंद करने का'....'स्त्री के प्रति सम्मान की भावना पैदा करने का'......'हम सबको अपने अंतर्मन में झांककर देखने का।'....................हम और आप जिस भाँति  भी अपना आक्रोश, दुःख,श्रधांजलि व्यक्त करना चाह  रहे हैं; कर रहे हैं। परन्तु आज सब यह मान गए हैं कि  समाज में स्त्रियों के प्रति रवैया दिन-ब-दिन खराब होता ही चला जा रहा है। स्त्री-पुरुष सब यही कह रहे हैं कि उनके प्रति दृष्टीकोण में परिवर्तन लाना ही पड़ेगा वर्ना समाज और बिगड़ेगा।
                                                    इसलिए आज मेरे सभी फेसबुक एवं ब्लॉगर मित्रों, अग्रजों, अनुजों एवं अपने बच्चों से करबद्ध निवेदन एवं आग्रह है कि कोशिश करें कि आप अपने घर, बाहर, मित्रों से बातचीत के मध्य ''माँ और बहनों'' से सम्बंधित गालियों का प्रयोग ना करें। ये हमारी एक पहल होगी स्त्रियों को शाब्दिक अपमान से बचाने  की। आज मेरे एक अग्रज  जी ने आज लिखा है कि,''समाज जल्दी नहीं बदलता....लेकिन बदलता अवश्य है और जो नहीं बदलता वह समाप्त हो जाता है।''  बात बलकुल सही है। क़ानून में बदलाव सरकार का काम है और हम उसे जगाने का भरसक प्रयत्न कर भी रहे हैं लेकिन खुद जागना और समाज को जगाना हमारा प्रथम दायित्व है। इसलिए आज बिना किसी बाहरी विद्रोह के, मन के अन्दर चल रहे विद्रोह के साथ मेरी प्रार्थना स्वीकार करें और पुश्तों से प्रयोग में लायी जा रही उन गालियों की तिलांजलि के साथ ही '' दामिनी'' को श्रधांजलि अर्पित करें ........हो सकता है आपके इस प्रयास से उसकी आत्मा को कुछ शांति मिल जाए।
.......................................डॉ .रागिनी मिश्र ...........

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गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

''राम! अब आ ही जाओ''


जब मिटाने रावण  को,श्रीराम आयेंगे, 
सामने अपने वो,कितने ही रावण पाएंगे
देख उनको, क्या नहीं वो अच्कचायेंगे, 
बढ़ गए कैसे इतने, सोच में पड़ जायेंगे।

''त्रेता में तो कर दिया था संहार उसका 
कैसे बढ़ा  कलियुग में परिवार उसका
मैं तो हूँ एक,फिर कैसे हो संहार सबका
कर सकूंगा फिर से क्या उद्धार सबका ?''

उस समय तो एक रावण सामने था
और साथ उसके राछसों की सेना थी
आज हर छेत्र में जगह-जगह रावण हैं
और साथ सबके रावणों की ही सेना है"।

सोच ये श्रीराम भी पद पीछे खींचेंगे
इस समस्या से वो भी आँखें मीचेंगे
लेंगे नहीं जोख़िम वो उसको मारने का
ना हो कहीं भय उनको उससे हारने का।

हो कैसे फिर, कलियुग में संहार उसका ?
यूँ; कैसे रुके वर्तमान में विस्तार उसका ?
क्या यूँ ही करता रहेगा, वो विष-वमन ?
और होता ही रहेगा, हम सबका दमन ?

करके अंत रावण का तुम ''सीता'' लाये थे' 
सृष्टी की हर स्त्री का  तब आशीष पाए थे' 
आज कितनी दामिनियों ने गुहारलगाई है 
एक साथ मिलकर सब फिर  चिल्लाई हैं।


हे राम! अब सुन ही लो, हम सबकी पुकार
फिर से इक बार रोक लो, तुम ये अत्याचार
ना झिझको तुम, देख रावणों का दुर्व्यवहार
हैं; तुम्हारे साथ भी,हम सभी वानर तैयार।

..........डॉ . रागिनी मिश्र .................










शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

तुम्हारी यादें



आओ तुम्हारी यादों को,
                       थोड़ा सा सवांर  लूं,
जम गयी है धूल इनपे,
                    चलो  इसे बुहार लूं..........


समय की शिला के नीचे,
                      दबी हुई यादों को,
जीवन-संध्या की बेला मे,
                       फिर से निकाल लूं.........


जिन्दगी  की जद्दोजहद में; 
                         भूली उन यादों को,
फुर्सत के इन पलों में; 
                            ह्रदय में फिर पाल लूं........


चलते ही चलचित्र,
                   मानसपटल पर ,यादों का
मुरझाई उन आँखों में,
                     जीवनरस फिर से  डाल लूं .......


साथ बिताये उन लम्हों की,
                      सहेज कर रख थाती
स्मृति -पटल बंद करके, 
                          ताला उस पर डाल दूं ......


अनमोल तुम्हारी यादों का, 
                          कोई मोल नहीं जग में
इसलिए उन्हें अंतर्मन के,
                            उस कोने में ही डाल दूं ......






.........................डॉ..रागिनी..मिश्र ................................