आज वह मौत से हार गयी। लेकिन हम सबके अन्दर एक जुनून, एक जज़्बा पैदा कर गयी; 'अन्याय के खिलाफ आवाज़ को बुलंद करने का'....'स्त्री के प्रति सम्मान की भावना पैदा करने का'......'हम सबको अपने अंतर्मन में झांककर देखने का।'....................हम और आप जिस भाँति भी अपना आक्रोश, दुःख,श्रधांजलि व्यक्त करना चाह रहे हैं; कर रहे हैं। परन्तु आज सब यह मान गए हैं कि समाज में स्त्रियों के प्रति रवैया दिन-ब-दिन खराब होता ही चला जा रहा है। स्त्री-पुरुष सब यही कह रहे हैं कि उनके प्रति दृष्टीकोण में परिवर्तन लाना ही पड़ेगा वर्ना समाज और बिगड़ेगा।
इसलिए आज मेरे सभी फेसबुक एवं ब्लॉगर मित्रों, अग्रजों, अनुजों एवं अपने बच्चों से करबद्ध निवेदन एवं आग्रह है कि कोशिश करें कि आप अपने घर, बाहर, मित्रों से बातचीत के मध्य ''माँ और बहनों'' से सम्बंधित गालियों का प्रयोग ना करें। ये हमारी एक पहल होगी स्त्रियों को शाब्दिक अपमान से बचाने की। आज मेरे एक अग्रज जी ने आज लिखा है कि,''समाज जल्दी नहीं बदलता....लेकिन बदलता अवश्य है और जो नहीं बदलता वह समाप्त हो जाता है।'' बात बलकुल सही है। क़ानून में बदलाव सरकार का काम है और हम उसे जगाने का भरसक प्रयत्न कर भी रहे हैं लेकिन खुद जागना और समाज को जगाना हमारा प्रथम दायित्व है। इसलिए आज बिना किसी बाहरी विद्रोह के, मन के अन्दर चल रहे विद्रोह के साथ मेरी प्रार्थना स्वीकार करें और पुश्तों से प्रयोग में लायी जा रही उन गालियों की तिलांजलि के साथ ही '' दामिनी'' को श्रधांजलि अर्पित करें ........हो सकता है आपके इस प्रयास से उसकी आत्मा को कुछ शांति मिल जाए।
.......................................डॉ .रागिनी मिश्र ...........
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