आओ तुम्हारी यादों को,
थोड़ा सा सवांर लूं,
जम गयी है धूल इनपे,
चलो इसे बुहार लूं..........
समय की शिला के नीचे,
दबी हुई यादों को,
जीवन-संध्या की बेला मे,
फिर से निकाल लूं.........
जिन्दगी की जद्दोजहद में;
भूली उन यादों को,
फुर्सत के इन पलों में;
ह्रदय में फिर पाल लूं........
चलते ही चलचित्र,
मानसपटल पर ,यादों का
मुरझाई उन आँखों में,
जीवनरस फिर से डाल लूं .......
साथ बिताये उन लम्हों की,
सहेज कर रख थाती
स्मृति -पटल बंद करके,
ताला उस पर डाल दूं ......
अनमोल तुम्हारी यादों का,
कोई मोल नहीं जग में
इसलिए उन्हें अंतर्मन के,
उस कोने में ही डाल दूं ......
.........................डॉ..रागिनी..मिश्र ................................
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
यादों का झरोखा बहुत ज़रूरी है इस जीवन में ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना ...
खुशनुमा यादें यूँ झाड पोंछ कर व्यक्ति फिर सहेज कर रख लेता है .....खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंअनमोल तुम्हारी यादों का,
जवाब देंहटाएंकोई मोल नहीं जग में
इसलिए उन्हें अंतर्मन के,
उस कोने में ही डाल दूं ......
बहुत खूब
http://urvija.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_21.html
जवाब देंहटाएंआओ तुम्हारी यादों को,
जवाब देंहटाएंथोड़ा सा सवांर लूं,
जम गयी है धूल इनपे,
चलो इसे बुहार लूं..........