मंगलवार, 8 जनवरी 2013

यही है प्यार!

हर सूखे पत्तों में, कुछ नमी ज़रूर बची होती है,
पेड़ों को ना सही, धरा को उसकी ज़रुरत होती है .....

कौन कहता है कि, ठुकराए हुए की कद्र नहीं होती है
हमसे पूछोsss  जिंदगी उसके बाद ही तो शुरू होती है ....

बनके नासूर जो ज़ख़्म,  हर पल टीसते रहते हैं,
सच कहूँ; तो उन्ही में कस्तूरी-गंध, बिंधी होती है ......

जिंदगी मकसद पाती है ,अक्सर ही बे-मंजिल होकर,
जिनके दिलों में प्यार की, वही कशिश बची होती है ......

फिर क्यूँ टूट जाते हो, इक साथ छूट जाने के बाद,
सूखी टहनी पर ही तो नए पत्तों की आमद होती है .....

आग में तपकर ही तो सोना कहलाता है कुंदन,
चोट खाकर ही तो देखो उसकी क्या कीमत होती है .....

ना तपेगी जब तक भीषण ज्वाला में तेरी जिंदगानी,
समझेगा ना तू, उसकी क्या असली सूरत होती है .... 

..................डॉ . रागिनी मिश्र ...................

9 टिप्‍पणियां:

  1. फिर क्यूँ टूट जाते हो, इक साथ छूट जाने के बाद,
    सूखी टहनी पर ही तो नए पत्तों की आमद होती है ...

    सच खा है ... सूकी टहनी पे नए पत्ते अआते हैं .. नए मौसम का सन्देश ले के ...

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  2. yet another good creation.....
    thoughts r beyond imaginations...keep it up..

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  3. जिंदगी मकसद पाती है ,अक्सर ही बे-मंजिल होकर,
    जिनके दिलों में प्यार की, वही कशिश बची होती है .....

    sabse behtareen... sabse sateek!!
    aksar aisa hota hai, jab lagta hai kya karun, tabhi ek dum se manjil dikh jati hai..:)

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  4. जिंदगी मकसद पाती है ,अक्सर ही बे-मंजिल होकर,
    जिनके दिलों में प्यार की, वही कशिश बची होती है ......
    bilkul sach.. aksar asia hota hai, jab lagta hai, sab kuchh haar chuke, tabhi koi dur se dikh jata hai, jo manjil tak le jata hai...:)
    bahut behtareen..!!

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  5. फिर क्यूँ टूट जाते हो, इक साथ छूट जाने के बाद,
    सूखी टहनी पर ही तो नए पत्तों की आमद होती है .....
    बेहतरीन अहसास, के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  6. फिर क्यूँ टूट जाते हो, इक साथ छूट जाने के बाद,
    सूखी टहनी पर ही तो नए पत्तों की आमद होती है .....

    लाज़वाब बहुत गहरी और सच्ची बात कही रागिनी जी. आपके ब्लॉग को फोलो कर रही हूँ जिससे आगे भी अच्छी रचनाएँ पढ़ सकूं.

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  7. आग में तपकर ही तो सोना कहलाता है कुंदन,
    चोट खाकर ही तो देखो उसकी क्या कीमत होती है .....

    Badhiya Kahi....

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  8. ना तपेगी जब तक भीषण ज्वाला में तेरी जिंदगानी,
    समझेगा ना तू, उसकी क्या असली सूरत होती है ....
    bahut lhub, jabtak apne karm rupi jyola me, jindgi ko nahi tapayge, tabtak aap is sansar ko nahi samjh payge..

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  9. फिर क्यूँ टूट जाते हो, इक साथ छूट जाने के बाद,
    सूखी टहनी पर ही तो नए पत्तों की आमद होती है .....

    sundar abhiyakti ke roop me khas gajal padhane ko mili sukriya ragini ji .

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