रविवार, 18 अगस्त 2013

पिया! हमही तुमरा पियार हूँ, सजन! हमही तुमरी यार हूँ,


पिया! हमही तुमरा पियार हूँ 
हमहूँ का चितवो एक बार। … 
सजन! हमही तुमरी यार हूँ,
हमते बतियाओ तौ एक बार। …।

               (१ )



रोजै ही मन करत हमार 

फेंक देई मोबाइल तोहार 
चिपक के हरदम जेहिते तुम  
बातन का लगउते अम्बार,
मुला; हमते कुच्छो कहिते
मुँह जेइसे सिय जात तोहार,
ब्याह किये का उकै संग ?
की है तू भरतार हमार ?


                (२ )

फोड़ देई ई कम्पूटर का
घंटन करते ऊसे आँखें चार
फेसबुक और आरकुट  का
मरिबेइ जूता चार हज़ार
हरदम्मै ही चैट बाक्स पर
लागे सुंदरियन की कतार
करि देइब डाइल १०९० हम
अब तो सुधर जाओ सरकार। ….


पिया! हमही तुमरा पियार हूँ
हमका भी चितवो एक बार ,
सजन! हमही तुमरी यार हूँ,
हमते बतियाओ तौ एक बार। …।


                                             डॉ रागिनी मिश्र 


5 टिप्‍पणियां:

  1. आंचलिक भाषा की छुवन लिए ... दिल के तारों को छूती हैं दोनों भावमय रचनाएं ...

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  2. piya hamhi ..... rachana bahut achchhi lagi nari man ki bhavnaon ko apne khoobsoorat dhang se padh liya hai ....aj kal f b pr log etana samay dene lage hain ki ghr me tanav fail rha hai ....avdhi bhasha me bahut khoobsoorat dhang se apne shabdo ko piroya hai .....rachana bejod hai

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