बुधवार, 5 सितंबर 2012

बिनु गुरु ज्ञान कहाँ ते पाऊं

एक कच्ची मिट्टी के ढेले को सानकर, उसे चाक पर आकार देकर, आग में तपाकर सुंदर कलाकृति के रूप में परिवर्तित करने का श्रेय उस कुम्भकार को है जिसने इतनी मेहनत करके उसे दूसरों के लिए बनाया .....धन्य है वह . ठीक उसी प्रकार एक गुरु अपने शिष्य को संवारकर दूसरों के समक्ष अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित करने के लिए तैयार करता है, वह  उसके भविष्य के निर्माण में उसका सहयोग करता है. मन से गहन अन्धकार को निकालकर जो अपने शिष्य को प्रकाश से भरे सही मार्ग पर ले जाए वोही वास्तव में गुरु कहलाने का अधिकारी है ...फिर चाहे वो माँ हो, पिता हो, गुरु हो, भाई अथवा बहन या फिर मित्र या कोई और. हमें जीवन में जिससे ज्ञान प्राप्त हो जाए वही  हमारा गुरु है.
आज शिक्षक दिवस के पावन पर्व मैं सर्वप्रथम अपनी माँ को प्रणाम करुँगी तत्पश्चात अपने जीवन में विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तक के उन समस्त शिक्षकों को शत –शत प्रणाम करती हूँ जिनके उचित दिशा-निर्देश से आज मैं  कुछ बन पायी हूँ .
लेकिन बात यहीं समाप्त नहीं हो जाती .....क्योंकि जीवन अभी चल रहा है. मैंने इन सबके अलावा भी बहुत सारे लोगो से बहुत कुछ सीखा  है. 
अपने भाई (मनोज) से दूसरों की सहायता करना सीखा  है तो अपनी बहन (कामिनी) से सहनशक्ति,अपने पति (विवेक) से तो मैंने पशु-सेवा, दूसरों से प्रेम करना, जीवन में आगे बढ़ना, अपनी पहचान और ना जाने क्या-क्या सीखा  है ....अपनी मित्र (राज्यश्री) से जीवन बिखरने के बाद जोड़ना सिखा है, तो अन्य 
(निताशा) से जीवन दर्शन का ज्ञान मिला है....ये सब पूरा ज्ञान  मिलाकर मैं एक सफल टीचर, प्रिसिपल, माँ ,पत्नी,और एक समाज-सेविका बन पायी हूँ ,,,इन सबकी मैं आजीवन आभारी रहूंगी और सदा ही इनसे सीखे हुए पाठ मेरे जीवन का मार्ग प्रकाशित करते रहेंगे....लेकिन इन सबके अलावा जिन्होंने मुझसे मेरी पहचान अनजाने में करवा दी है उनको सिर्फ आज का ही दिन प्रणाम के लिए पर्याप्त नहीं है ..मैं आजीवन उन सभी की आभारी हूँ और होती रहूंगी ....



.......................................................डॉ . रागिनी मिश्र ................................



2 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन के अनेकों समय गुरु भाव लिए अनेकों लोग जीवन में आते हैं ... माँ से लेकर कोई बच्चा भी जो कुछ सिखा जाय ...
    आज के दिन नमन है उन सभी गुरुतुल्य लोगों को ...

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