सोमवार, 25 अप्रैल 2011

आ ही जाना प्रिये

प्रेम जब द्वार खटखटाए ;
सो ना  जाना प्रिये ......
जब आहट ह्रदय पे आये 
खो ही जाना प्रिये..........

मन-आँगन की बगिया में,
दो फूल खिला ही देना तुम.....
मन-मदिरा व्यर्थ ना करना, 
दो घूँट पिला ही देना तुम.....
तपती जेठ की गर्मी में ,
सावन से नहला देना तुम........
मन तरसा है सदियों से, 
इसको बहला देना तुम......
जब शीतल मंद बयारों संग 
फागुन मानस पर छाए ,
तब मुंदी हुई आँखों से
मेरे रंग में रंग जाना प्रिये.....
खो ही जाना प्रिये..........
सो ना जाना प्रिये..........
आ ही जाना प्रिये.............

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