सोमवार, 25 अप्रैल 2011

इंतज़ार (कहानी )

आज सुबह से ही गीत बेचैनी से इधर-उधर कर रही थी. कैलेंडर में देखा ...एक अक्टूबर ..आँखों से उतरकर दिल में पहुँच गयी...एक अक्टूबर. बिताये नहीं बीतता उससे ये दिन. जाने किसका इंतज़ार रहता है उसे? और क्यों ?...वह तो  ये  भी  नहीं  जानती. दिमाग अनवरत अतीत में गोते   लगा रहा है  ....जब वो राज से मिलने उसके पास गयी थी .हाँ! राज ही तो था वो.समझ ही न सकी थी वो राज के मन की बात को ...हमेशा ही एक आवरण में जीने वाला ..और वो हमेशा ही पहाड़ी नदी की भांति  बेरोक-टोक स्वयं  रास्ते निकालकर  बहनेवाली .निश्छल,कल-कल खुल-खुल ..
.
"क्या हो रहा है"?
"कुछ नहीं ..बस तुमसे दूर जाने की सोच रहा हूँ "
"क्यों"?????चिल्ला पड़ी वो
"सोचता हूँ तुम्हारी परेशानियाँ ना बढ़ाऊ"
"क्या? कैसी परेशानी?"
"तुम नहीं समझोगी"..वो गंभीरता से बोला
" हाँ,हाँ! पागल हूँ मैं, जो ना समझूँगी .....पूरी दुनिया की अकल तुम्हारे पास ही तो है ...जो मर्ज़ी वो करो"
.कहकर गुस्से में पैर पटकती हुई अपने घर वापस आ गयी थी. काश रोक लिया होता उस दिन उसने राज़ को  जाने से.
अतीत के गह्वर से बाहर आ गयी.अपने मन को अपने नियंत्रण में करना आ गया है उसे अब. पहाड़ी नदी पर डैम  बना लिया है उसने या यूँ कहे कि समय ने सिखा दिया है.

सारे दिन कॉलेज में भी अन्यमनस्क रही वह....जितना भूलने की कोशिश करती उतना ही कमबख्त याद पीछा नहीं छोडती.किसी तरह समय पूरा होते ही वह कॉलेज से निकलकर सीधे मंदिर की तरफ बढ़ चली .....भगवान्  के पास रोने नहीं...बल्कि उस जगह राज़ की मौज़ूदगी  महसूस करने। कितना बदल दिया है आज उसे राज़ के उस प्यार ने जिसको वह कभी खुद पहले इस तरह से महसूस ना कर सकी थी। थोड़ी देर मंदिर में बैठी ....दर्शन किये ...दुआ भी की राज़ की खुशहाल जिंदगी के लिए .....हर जगह था राज़ उसके लिए....मंदिर की उस बेंच पे भी  जहाँ बैठकर उसने अपने जोते-मूज़े उतारे थे .     

पहली बार अपने घर के बाहर मिली थी उससे  वो ........कितना हेंडसम दिख रहा था.....सफ़ेद शर्ट और नीली जींस में
..पलटकर देखा था उसने भी उसे अपनी "इंडिका" में घुसते हुए...एक ठहराव था उसकी निगाहों में...सबका ही ध्यान रखनेवाला,एक अच्छे दिल का मालिक था वो...पर जाने क्यों वही नहीं समझ सकी थी उसे ....

"क्या कर रही हो गीत?"

फोन उठाते ही राज़ ने पूछा.
"कुछ भी तो नहीं"
"चलो कहीं घूम आयें"
"पागल हो क्या"?
चिल्ला पड़ी थी वह ....कितना गन्दा है ...च्छी-छि...ज़रा सा हँस कर बात क्या कर ली सर पर ही चढ़ गया ....अभी घर पे सबको पता चलेगा तो तूफ़ान ही आ जाएगा .......सब उसे कितना मान देते हैं...नहीं बात करूंगी कभी उससे
क्या पता था कि बात करे बिना रह ही ना पायेगी वह ....यही तो प्यार था ...जिसका एहसास बहुत  बाद में हो पाया .. और आज  वह उन सब बातों के लिए तरसेगी  जिनको कभी वह नज़र-अंदाज़ कर दिया करती थी ...

हमेशा ही राज़ ने उसकी ख़ुशी का ध्यान रखा था....जब भी उसने बुलाया वह तुरंत ही जिन्न की तरह हाज़िर हो जाता था....जब तक चाहती तब तक बैठा रहता...हमेशा ही उसके आने से घर का माहौल खुशनुमा हो उठता. "मेरे पास बहुत पोसिटिव -अनेर्जी है".........हँसकर कहता था. घंटों बैठकर अच्छी -अच्छी बातें सुनाता सबको.


लेकिन शिकायत गीत को उससे भी है. एक बार भी अपने दिल की बात नहीं बताई उसने.....अगर बता देता तो हर परेशानी का हल ढूंढ लेने वाली गीत इसका भी समाधान कर देती.....

"मेरे आने से परेशानी बढ़ गयी ना तुम्हारी?"
गीत  ने कितने सहज भाव से पूछा था और उसने कितनी गंभीरता से कहा था......
"हाँ"
"मेरी भी"
गीत ने चिढ कर कहा था.....पर वह तो जाने क्या समझ बैठा और आज इतनी दूरी आ गयी एक नासमझी के कारण.

क्या प्यार ऐसा ही होता है जब   वह हमारे पास होता है हम उसे समझ नहीं पाते और जब वह हमसे दूर चला जाता है तब एहसास जाग जाता है? समय रहते हुए भगवान यह ज्ञान क्यों नहीं दे देता है? जाते समय उसकी आँखों में जो भावपूर्ण पीड़ा थी ...उसका एहसास आज हो रहा है उसे. अपनी ही धुन में हमेशा जीने वाली गीत को पता भी ना चला और राज़ उसकी जिंदगी से बहुत दूर चला गया.....लेकिन चले जाने के बाद आज भी हर रोज़, हर कदम, हर घडी वह उसके साथ रहता है .....और वह उसे महसूस करते हुए अपनी जिंदगी को ख़ुशी-ख़ुशी जीने में लग जाती है ......लेकिन रोज़ ही उसका इंतज़ार भी करती है...उसे आशा ही नहीं विश्वास भी है उसके वापस लौटने का .......................क्योंकि आज वह जान चुकी है कि अगर वह यहाँ परेशान है तो वह भी  उसे याद करता होगा ........... उस समय का इंतज़ार तो उसे करना ही है ...उसे बहुत कुछ बताना भी है राज़ को....शिकायत भी करनी है ....उसके कंधे पर सर रखकर रोना भी है .......   . नहीं .....रोएगी नहीं...रोने से राज़ को गुस्सा आ जाती है .....इसलिए हँसकर ही उसका स्वागत करेगी वह ... ..............मंदिर की उस बेंच से उठकर थके हुए कदम लगभग घसीटते हुए घर की तरफ चल पड़ी ..म्यूजिक सीडी  बेचने वाले मिश्राजी क़ी दुकान से गाने की आवाज़ आ रही थी .........."तुम्हारा इंतज़ार है तुम पुकार लो ............".

 ..........................डॉ रागिनी मिश्र .............................

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